शनिवार, 8 अप्रैल 2017

...और फिर पूरे दिन उसकी चहचहाहट गूँजती रही

वह फुदकती हुई चिड़िया की तरह मेरे कमरे में आई. मुझे दो टॉफ़ी थमाई और जाने लगी. मैने पूछा, अरे बता तो दे आज है क्या... अपने आगे के टूटे दातों के बीच से साँस खीचकर बोली, मेरा हैपी बड्डे....मैने बड़ी मुश्किल से उसे रोका और शेक हैंड कर विश किया.... इतना खुश थी कि पलट कर थैंक यू की जगह मुझे भी हैप्पी बड्डे कहकर भाग गयी.
कुछ देर बाद उसके रोने और अपनी माँ से लड़ने की आवाज़ आ रही थी. कह रही थी भैया के बड्डे पर केक आई थी मेरे पर क्यों नहीं आएगी... माँ कोई जवाब नहीं दे रही थी... कुछ देर बाद उसकी माँ ने झल्लाते हुए कहा, चुप हो जा नहीं तो पीट दूँगी.
मैंने साइड से पूछ लिया. भाभी वो रो क्यों रही थी ? वो डबडबाई आँखों से बोलीं, भैया मम्मी (सास) (मेरी मकान मालकिन) को लड़कियों का जन्मदिन मनाना पसंद नहीं है.
मैं बाजार गया, चिड़िया के लिए एक कैडबरी सेलेब्रेशन लाया. लौट कर आया तो वह गली में क्रिकेट खेल रहे बच्चों के बीच कुछ उदास सी बैठी थी (शायद जवाब ढ़ूंढ रही होगी कि आख़िर मेरे लिए केक आया क्यूँ नहीं, आख़िर दादी को लड़कियों का केक काटना पसंद क्यों नहीं). मैने उसे गिफ्ट पैक थमा दिया. पलट वह कुछ नहीं बोली. मैं अपने कमरे में चला आया. अंदर उसकी आवाज़ आ रही थी. वह अपने भाई सहित एक-एक लड़के को इठलाते हुए गिफ्ट दिखा रही थी.
इसके बाद केक भूलकर पूरे दिन घर में उसकी चहचहाहट गूँजती रही.


(*Parts of artwork have been borrowed from the internet, with due thanks to the owner of the photograph/art)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें