"इन्कलाब जिंदाबाद से हमारा यह उद्देश्य नहीं था, जो आम तौर पर गलत अर्थ में समझा जाता है। बम और पिस्तौल इन्कलाब नहीं लाते। बल्कि इन्कलाब की तलवार विचारों की सान पर तेज होती है। हमारे इन्कलाब का अर्थ पूंजीवाद और पूंजीवादी मुद्दों की मुसीबतों का अंत करना है।"
उक्त व्याख्या शहीद-ए-आजम भगत सिंह ने असेम्बली बम धमाके की सुनवाई के दौरान दिया था। भगत सिंह की लड़ाई मनुष्य के शोषण के खिलाफ थी। इसका जिक्र बम धमाके के बाद असेम्बली में उड़ाए पर्चों में भी था।
उनमें लिखा था कि हम मनुष्य के जीवन को पवित्र समझते हैं। हम ऐसे उज्ज्वल भविष्य में विश्वास रखते हैं, जिसमें प्रत्येक व्यक्ति को पूर्ण शान्ति और स्वतंत्रता का अवसर मिल सके। हम मानव रक्त बहाने के लिए अपनी विवशता के लिए दुखी हैं पर क्रांति द्वारा सबको समान स्वतंत्रता देने और मनुष्य द्वारा मनुष्य के शोषण को समाप्त कर देने के लिए क्रांति के अवसर पर कुछ न कुछ रक्तपात अनिवार्य है।
भगत सिंह की लड़ाई मनुष्य द्वारा मनुष्य के शोषण के खिलाफ थी। लेकिन देश में आज़ाद सवेरा आने के बाद भी हम उस दिशा में कितना आगे बढ़ सके...?
हाँ, सकारात्मक बदलाव आए हैं। लेकिन शायद दाल में नमक से भी कम। इस दिशा में हमें बहुत कुछ करने की जरूरत है। देश की 80% आबादी अभी भी दो वक़्त की रोटी के लिए जूझ रही है। हमें उनके भी हक़ की बात करनी होगी। इसके लिए हमें खुद को शोषित से शोषक में तब्दील होने से भी रोकना होगा।
इन्कलाब का अर्थ समझे बिना... इन्कलाब जिंदाबाद का नारा बुलंद करना इन बलिदानियों का अपमान होगा।
भाई भगत, राजगुरु और सुखदेव को बलिदान दिवस पर सत-सत नमन।
दुआ है हम सब भी देश और देशवासियों के प्रति प्रेम के उस भाव को महसूस कर सकेंगे। जिसमें इन वीर जियालों ने हंसते-गाते फांसी के फंदे को चूम लिया था।
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