भैया जो फ़ोटू डाली हैं, इसे कहते हैं मलाई मक्खन...। कुछ ऐसा आइटम जिसे स्वर्ग के किसी व्यंजन से जोड़कर देखा जा सकता है। माने कित्ता भी खा लो पर जी नहीं भरेगा। इतना जबर स्वाद है कि हम जैसे मिठाइया तो इसे देख के ही बौरा जाते हैं।
इसी मलाई मक्खन के चक्कर में बचपन में एक दफे अमूल बटर की टिकिया ख़रीद ली। और जब हपक के बड़ी सी बाइट काट ली तो थूकते-थूकते थक गए लेकिन साली मुंह में घुसी बटर की नमकाहट न गई। तब साला पहिली दफे समझ आया कि अंग्रेजी का ईजाद सिर्फ आदमी को चूतिया (बेवकूफ) बनाने के लिए किया गया है।
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आधी जिंदगी खप जाने के बाद समझ आया कि अपने जीवन का लक्ष्य तरह-तरह के व्यंजनों का स्वाद लेना और जितनी हो सके दुनिया नाप लेना ही है। हालांकि कि कुछ मर्सडीज-बीएमडब्लू क्लास के अलावा स्प्लेंडर क्लास तक के लोग हमें चूतिया मानते हैं। उनके ऐसा मानने में कोई बुराई है नहीं। हम लोग हैं ही चूतियामेटिक। क्योंकि अपने को ख़ुशी इस चूतियापे में ही मिलती है, तो का करें...।
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खैर बात मतलब की करते हैं। ऊपर जिस आइटम की बात की है उसका स्वाद जरूर लो। एक बार ले लिया तो यह समझ लो कि यह गुलजार वाले नमक के इश्क़ की तरह ही लगेगा, जो जिंदगी भर छूटेगा नहीं। आज घर आया हूँ और हरदोई में हूँ। सुबह उठकर नित्य कर्म से निवृत होने से भी पहले मलाई मक्खन खाने निकल लिया। इस बार खा कर ही नहीं आया इस आईटम का पोस्टमॉर्टम भी कर लिया।
हरदोई में यह बड़े चौराहे पर सियाराम की दुकान के सामने मिलता है। ठेल वाले हैं भैया श्यामजी। ठेल का नाम श्यामजी मलाई मक्खन वाले। वो हरदोई वालों को करीब 20 साल से मलाई मक्खन खिला रहे हैं। इससे पहले उनके पिताजी मन्नी लालजी बगल के जिले सीतापुर में मलाई मक्खन बेचते थे।
श्यामजी से पूछा कि आखिर आपके पिता जी ये आइटम कहां से ले आए?
इस पर उनके चेहरे पर मुस्कान आ गई। बोले पिता जी अपने जवानी में घर छोड़कर लखनऊ भाग गए रहे। हुंआई पहिले किसी सेठ के घर रुके लेकिन मन नहीं लगा। फिर एक हलवाई के पास रहे। वही हलवाई उन्हें सिखाई दिएस।
फिर 20 साल तक वो सीतापुर में मलाई मक्खन बेचिन फिर हरदोई आ गए। हियां हम और पिता जी दोनौ जने ठेला लगावै लगे। पिछले कुछ साल से पिता जी तो बीमार रहई लगे तो अकेले हमही लगाई रहे हैं।
श्यामजी बताएन कि मलाई मक्खन बनारस में मलैया और आगरा में दौलत की चाट के नाम से मिलता है।
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तो गुरु हरदोई में मलाई मक्खन का पता तो हमने बता दिया। कुछ दिन पहिले शहाबाद वाली Komal Rastogi जी बताई रहन कि दिल्ली में चावड़ी बाजार में अपना आइटम अवेलेबल है। आगरा की दौलत चाट और बनारस की मलैया के अलावा जहां कहीं भी जिस नाम से यह मिलता है आप बताओ। बताओ ही नहीं खाकर आओ और पैक कराकर घर वालों को भी जायका दिलाओ। जिससे कि इन चीजों को बेचने वालों की रोजी-रोटी चलती रहे।
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..और फिर हम और आप जैसे चटोरे तो इन्हीं चीजों के चलते जिन्दा हैं। ये मिलना बंद हो गईं तो सल्फाज खाकर जीवन ही समाप्त करना पड़ जाएगा।
इसी मलाई मक्खन के चक्कर में बचपन में एक दफे अमूल बटर की टिकिया ख़रीद ली। और जब हपक के बड़ी सी बाइट काट ली तो थूकते-थूकते थक गए लेकिन साली मुंह में घुसी बटर की नमकाहट न गई। तब साला पहिली दफे समझ आया कि अंग्रेजी का ईजाद सिर्फ आदमी को चूतिया (बेवकूफ) बनाने के लिए किया गया है।
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आधी जिंदगी खप जाने के बाद समझ आया कि अपने जीवन का लक्ष्य तरह-तरह के व्यंजनों का स्वाद लेना और जितनी हो सके दुनिया नाप लेना ही है। हालांकि कि कुछ मर्सडीज-बीएमडब्लू क्लास के अलावा स्प्लेंडर क्लास तक के लोग हमें चूतिया मानते हैं। उनके ऐसा मानने में कोई बुराई है नहीं। हम लोग हैं ही चूतियामेटिक। क्योंकि अपने को ख़ुशी इस चूतियापे में ही मिलती है, तो का करें...।
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खैर बात मतलब की करते हैं। ऊपर जिस आइटम की बात की है उसका स्वाद जरूर लो। एक बार ले लिया तो यह समझ लो कि यह गुलजार वाले नमक के इश्क़ की तरह ही लगेगा, जो जिंदगी भर छूटेगा नहीं। आज घर आया हूँ और हरदोई में हूँ। सुबह उठकर नित्य कर्म से निवृत होने से भी पहले मलाई मक्खन खाने निकल लिया। इस बार खा कर ही नहीं आया इस आईटम का पोस्टमॉर्टम भी कर लिया।
हरदोई में यह बड़े चौराहे पर सियाराम की दुकान के सामने मिलता है। ठेल वाले हैं भैया श्यामजी। ठेल का नाम श्यामजी मलाई मक्खन वाले। वो हरदोई वालों को करीब 20 साल से मलाई मक्खन खिला रहे हैं। इससे पहले उनके पिताजी मन्नी लालजी बगल के जिले सीतापुर में मलाई मक्खन बेचते थे।
श्यामजी से पूछा कि आखिर आपके पिता जी ये आइटम कहां से ले आए?
इस पर उनके चेहरे पर मुस्कान आ गई। बोले पिता जी अपने जवानी में घर छोड़कर लखनऊ भाग गए रहे। हुंआई पहिले किसी सेठ के घर रुके लेकिन मन नहीं लगा। फिर एक हलवाई के पास रहे। वही हलवाई उन्हें सिखाई दिएस।
फिर 20 साल तक वो सीतापुर में मलाई मक्खन बेचिन फिर हरदोई आ गए। हियां हम और पिता जी दोनौ जने ठेला लगावै लगे। पिछले कुछ साल से पिता जी तो बीमार रहई लगे तो अकेले हमही लगाई रहे हैं।
श्यामजी बताएन कि मलाई मक्खन बनारस में मलैया और आगरा में दौलत की चाट के नाम से मिलता है।
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तो गुरु हरदोई में मलाई मक्खन का पता तो हमने बता दिया। कुछ दिन पहिले शहाबाद वाली Komal Rastogi जी बताई रहन कि दिल्ली में चावड़ी बाजार में अपना आइटम अवेलेबल है। आगरा की दौलत चाट और बनारस की मलैया के अलावा जहां कहीं भी जिस नाम से यह मिलता है आप बताओ। बताओ ही नहीं खाकर आओ और पैक कराकर घर वालों को भी जायका दिलाओ। जिससे कि इन चीजों को बेचने वालों की रोजी-रोटी चलती रहे।
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..और फिर हम और आप जैसे चटोरे तो इन्हीं चीजों के चलते जिन्दा हैं। ये मिलना बंद हो गईं तो सल्फाज खाकर जीवन ही समाप्त करना पड़ जाएगा।
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