ये जो कटोरी में आप रबड़ी नुमा आइटम देख रहे हैं, यह दूध में पका खजूर है। मुझे ये काफी पसंद आया, हालांकि मुझे हर मीठी चीज पसंद आती ही है। खाते तो हम इसे बचपन से आ रहे हैं। लेकिन तब दूध में बाजार से सूखे मेवे के रूप में लाया गया छुहारा होता था। कुछ साल पहले ही जाना कि खजुरिया, खजूर और छुहारा सब एक ही बिरादरी के हैं।
यहां एक बड़ी मजेदार बात साझा कर रहा हूं। अपने शहर हरदोई में बचपन में जब बाजार में ठेल पर खजूर बिकता देखता तो इससे घिन आती थी। वजह इसका उस क्षेत्र में बिकना जहां, कुछ ही दूरी पर मीट बिकता था। मैं इसके और मीट के लाल रंग को मिलाकर देखता और सोचता था कि यह भी मांसाहार वाला कोई आइटम है। क्योंकि जिस क्षेत्र में यह बिकता था वह मुस्लिम बहुल था, ऐसे में यह भी सोचता था कि यह कोई मुसलमानी आइटम है। जिससे हम हिन्दुओं का कोई लेना देना नहीं है। जबकि ये सब बातें किसी ने मुझे बताई नहीं थीं। यह सब दिमागी खर-पतवार ही था। लिहाजा सालों तक मैंने खजूर नहीं चखा।
कुछ समय पहले ही किसी ने मुझे खजूर खिलाया तो मैं इसके स्वाद से परिचित हुआ। मीठा था तो स्वाद भी जम गया। बीते शनिवार को आलू की टिक्की (भल्ला/चाट) खाने के लिए रुका। खाते-खाते बगल में ठेल पर बिकता दिख गया। एक आधा किलो का पैकेट ले लिया। अगले दिन ऑफिस गया तो एक साथी से ये बात साझा की कि भाई जिंदगी में पहली बार खजूर खरीदा है। उन्होंने मेरी तरफ घूर के देखा और दूध में डालकर इसको खाने के तमाम गुण गिना दिए। वो गुण तो अपन ने किनारे कर दिए लेकिन जायका सोचकर चहक उठा। अगले ही दिन आइटम तैयार कर लिया। आज लिखने भी आधा कटोरी चट करने के बाद बैठा हूं।
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भाई जोरदार आइटम है। अगर अब तक ट्राई न किया हो तो कर लो। वरना मरने के बाद ऊपर जवाब देते नहीं बनेगा।
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