शुक्रवार, 21 अक्तूबर 2016

क्या खाकी को सिर्फ गाली ही दोगे... तो फिर हेमंत, मुकुल और जिया को भी गाली दो... ----------------------- सोशल मीडिया आर्मी से जुड़ी पोस्ट से भरा पड़ा है। इसी बीच आज पुलिस स्मृति दिवस आ गया। लेकिन खाकी को लेकर चुप्पी है। और जब यह चुप्पी टूटेगी तो कुछ पोस्ट दिखेंगी, जिनमें कोई पुलिसकर्मी किसी महिला को पीट रहा होगा, बैठकर रिश्वत के पैसे गिन रहा होगा या ड्यूटी के दौरान सो रहा होगा। कितनी बुरी है हमारी पुलिस। लेकिन क्या सिर्फ बुरी ही है। आप हां भी कह सकते हैं, अगर सिक्के का सिर्फ एक पहलू ही देखें। दरअसल, हमने सिर्फ स्याह पहलू ही देखा या या यूँ कहें कि दिखाया गया। क्या कभी हमने ड्यूटी के लिए जान कुर्बान करने वाले मुम्बई में हेमंत करकरे, मथुरा में मुकुल द्विवेदी, कुण्डा में जिया उल हक़, मुरैना में नरेंद्र कुमार सिंह के बारे में सोचा है। क्या उनकी कुर्बानी शहादत नहीं है। पुलिस के जिस सिपाही की तस्वीर ड्यूटी पर सोते हुए छपी थी। क्या आपको बताया गया कि इस ड्यूटी से पहले कितनी रातों से सोया नहीं है। क्या आपने जाना कि कब से उसने अपने बच्चे का मुंह नहीं देखा। क्या आपको पता है उसके खाना खाने का कोई समय नहीं होता। आपको सात घंटे की ड्यूटी के बाद अगर एक घंटे अधिक ऑफिस में रुकना पड़ जाए तो न जाने कितने लेबर लॉज़ का आप हवाला देते हैं लेकिन उनके लिए ड्यूटी का कोई निर्धारित समय नहीं है। 24 घंटे ड्यूटी। इसके बाद जनता के प्रतिनिधि का रौब देखने की मजबूरी सो अलग। दिनभर सिर्फ़ अपराध, अपराध और अपराध के साए में जीना होता है। --- बुराइयां हैं। हर देश में। हर समाज में। हर विभाग में। आप में और मुझमें भी। लेकिन क्या हमें उससे ऊपर नज़र उठाने की जरूरत नहीं है। अगर आप चाहते हैं कि पुलिस अच्छी हो, उसका बर्ताव अच्छा हो तो आपको अपने बर्ताव में भी छोटी-छोटी तब्दीली लानी होंगी। इसके लिए शुरुआत धूप में ट्रैफिक कंट्रोल कर रहे सिपाही को अपनी बोतल से ठंडा पानी ऑफर करने से भी हो सकती है। सोचना होगा। गौर से देखना होगा।नहीं तो हम अनजाने में ही देश की माटी और हमारी व आपकी सुरक्षा में अपनी जिंदगी कुर्बान करने वाले सम्मान से वंचित रह जाएंगे। अंत में उन सभी खाकी के वीर सिपाहियों को नमन, जिन्होंने खाकी और देश का इक़बाल बुलंद रखा। ------------------------------- बता दें कि आज ही के दिन 21 अक्टूबर 1959 को लद्दाख सीमा पर चीनी सैनिकों के हमले में शहीद हुए सीआरपीएफ के दस जवानों की याद में हर साल पुलिस स्मृति दिवस मनाया जाता है। तब से 2015 तक करीब 34 हजार पुलिसकर्मी देश की आंतरिक सुरक्षा में शहीद हो चुके हैं।

(*Parts of artwork have been borrowed from the internet, with due thanks to the owner of the photograph/art)

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