बुधवार, 12 अक्तूबर 2016

Jubaan par isq ka namak rakhne ka jurm

छी... एक मेहतर जाति के लड़के संग मुंह काला करवा आई
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- पता हइ रामू अहीर के हियां भंगियाइंदि लग गई है। गाउं वाले वहिके हियां कैसेउ नेउता मा शामिल न हुइबे की बात कर रहे हईं।
-लेकिन भैया भंगियाइंदि लगी काहे
-अरे वहिकी नातिन नाइ है गंगा, वहिकी ढेर जवानी चर्राई है। वहिका गांउ के भंगिन के लडि़का संग देखो गओ।
- संग देखो गओ को का मतलब।
- अरे चुतियन वाली बात न करो कराउ। देखो गओ को मतलब मुंह करिया करवाई रही हती अउर का।
-अच्छा, मतलब दोनों गंदो काम करति देखे गए।
-अरे काम करति तउ नाइ देखे गए लेकिन फिर स्कूल मा वह भंगेवा संग का हवन कर रही हती।

इसे पढ़कर आपको एक बार शायद ऐसा भी लगा होगा कि उक्त प्रसंग मुंशी प्रेमचंद के किसी उपन्यास का अंश होगा। लेकिन ऐसा नहीं है। यह तो समाज का नंगा सच है। वो भी मुंशी प्रेमचंद के जमाने का नहीं वीडियो जारी कर मेरा शरीर, मेरी मर्जी, मैं चाहें जिसके साथ सोउं कहने वाली दीपिका पादुकोण के जमाने का।
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ये पूरा मामला उत्तर प्रदेश के हरदोई जिला मुख्यालय से दस किलोमीटर की दूरी पर बसे एक गांव का है। जिसकी जानकारी मुझे हाल ही में वहां जाने पर हुई। साथ के कुछ लड़कों ने बताया कि कुछ दिन पहले गांव के एक अहीर परिवार की लड़की को गांव के ही मेहतर परिवार के लड़के के साथ देखा गया था(बता दूं कि सिर्फ साथ देखा गया)। धीरे-धीरे यह बात पूरे गांव में फैल गई। फिर क्या किसानी के काम से खाली बैठे लोगों के लिए यह मामला मनोरंजन का साधन बन गया। जिस परिवार से यह लड़की है वह ब्राह्मणों की बस्ती में बसा है और तरक्की कर रहा है। इसके चलते मामले में सबसे ज्यास रस तो ब्राह्मण ले रहे हैं। पुरूष ही नहीं महिलाएं भी उस 15 साल की मासूम के लिए न जाने कितने नीच शब्दों का इस्तेमाल कर रही हैं। उस लड़की का राह निकलना तक मुश्किल हो गया है। हर कोई उसे हिकारत भरी नजरों से देख रहा है। शरारती तत्व तो छेड़ने से भी बाज नहीं आ रहे हैं।
इस पूरे मामले को लेकर कुछ ब्राह्मणों ने तो उस परिवार के यहां किसी भी प्रकार के भोज में शामिल न होने का ऐलान कर दिया है। उनका कहना है कि उस परिवार की लड़की एक मेहतर (भंगी) के लड़के के साथ मुंह काला करा आई है। उसके घर में भंगियाइंद लग गई है, घर अछूत हो गया है। ऐसे में उसके यहां खाकर क्या अपना धर्म भ्रष्ट कर लें।
यहां मैं इन नंगों के सच से भी अवगत करा दूं। आज से कुछ साल पहले इन ऐलान करने वाले कुछ ब्राह्मणों की लड़कियां ठाकुरों के लड़कों के साथ अलग-अलग समय पर देखी गई थीं। लेकिन तब इनका घर अछूत नहीं हुआ था। न ही इनका घर तब अछूत होता है जब इनके लड़के गांव के हरिजनों और धनुकों की लड़कियों के साथ देखे जाते हैं। मुझे समझ ये नहीं आता कि इन कुकुरमुत्तों ने कौन सा ऐसा धर्मशास्त्र या समाजशास्त्र पढ़ लिया, जिसमें ये बदबूदार मैला भरा था। पढ़ क्या लिया, मुझे लगता है छककर खा ही लिया है।
अरे मूर्ख शिरोमणियों, साथ देखे जाने या शारीरिक संबंध बनाने से ये बच्चे अपराधी कैसे हो गए। कच्ची उम्र में बच्चों से गलतियां होना स्वाभाविक हैं। जिसपर अंकुश लगाना हमारे बस की बात नहीं है। इसके लिए समाज ने न जाने कितने प्रयास किए, न जाने कितनी कठोरतम् सजाएं दीं। लेकिन कुछ न बदला। हम अगर कुछ कर सकते हैं तो सिर्फ इतना कि हम इन्हें अच्छे और बुरे का अंतर बताने का प्रयास करें। इन्हें यह समझाने कोशिश करें कि इस उम्र में उन्हें अपनी ऊर्जा किस ओर व्यय करनी है।
अब और क्या कहूँ, मुझे तो चिंता उस मासूम बच्ची की है। न जाने अपने घर वाले ही उसके साथ कितनी बेरहमी से पेश आ रहे होंगे। वह बंदिशों की जंजीरों से न जाने किस कदर जकड़ी होगी। उस मासूम को क्या पता था कि जो दुनिया वह फिल्मों और टीवी सीरियलों में देख रही है वह रीललाइफ है। रियल लाइफ उससे बहुत अलग है। जैसे भारत और इंडिया अलग-अलग है।


(*Parts of artwork have been borrowed from the internet, with due thanks to the owner of the photograph/art)

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