शनिवार, 15 अक्तूबर 2016

Yaar Baba...Ab tum mere jaise ho gaye ho

पता नहीं कितने लोगों ने बचपन में बाबा(दादा) -दादी का प्यार पाया होगा। इस खूबसूरत रिश्ते को जिया होगा। मैंने तो जिया है। वो भी गांव वाला खाटी रिश्ता। जो चीनी नहीं गुड़ सा मीठा होता है। बहुत सोंधा होता है। इस सोंधे शब्द को वो ही समझ सकते हैं जिनकी जड़ें आज भी गांव में जीवित है।
ये दादी-बाबा मम्मी-पापा से भी ज्यादा प्यारे होते हैं। इसमें से दादी के पास तो आपकी हर समस्या का समाधान होता है वहीँ बाबा आपकी हर समस्या में साथ खड़े होने वाले सच्चे दोस्त होते हैं। आपकी बेसिर पैर की हर जिद को पुरा कराने की वो सिफारिश करते हैं।
मेरा भी बाबा से आत्मीय जुड़ाव रहा। जो बात मैं अपने चार साल के दोस्त से साझा करता था वह बाबा से भी कर लेता। उनके कंधों पर सवार होकर मैंने बागों और खेत-खलिहानों की सैर की। नहर में उनकी टांग को पकड़ कर तैरना सीखा। बरसात में उफनाए तालाबों से जिद कर फूल तुड़वाए। और भी न जाने क्या क्या, पूरी हुई ख्वाहिशों की फेहरिस्त बहुत लंबी है। पांच साल की उम्र तक का अगर कुछ याद आता है तो वह बाबा का याराना ही है।
गांव से पढ़ाई के लिए बाहर आने, कई शहरों में उच्च शिक्षा गृहण करने और फिर नौकरी तक का 27 साल का सफर पूरा हो चुका है। मगर आज भी उस गुड़ जैसे रिश्ते की मिठास मुंह में घुली महसूस करता हूं। दादी अब हमारे बीच नहीं रहीं लेकिन बाबा से अपनी दोस्ती आज भी उतनी ही गाढ़ी है। हां, हमारे रिश्ते में कुछ चीजे अब बदल गई हैं। अब मैं नहीं बाबा जिद करते हैं जो सबको बेसिर पैर की लगती हैं। लेकिन मुझे नहीं। और अब मैं उन्हें पूरा कराने की सिफारिश करता हूं।



(*Parts of artwork have been borrowed from the internet, with due thanks to the owner of the photograph/art)

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