शनिवार, 15 अक्टूबर 2016

Love you Gulzar

लव यू दादू...
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गुलज़ार दादू ये तुम्हारे चांदी जैसे बाल बड़े खूबसूरत लगते हैं। और तुम्हारी मांग तो वैसी बनी है जैसी मांग बनाकर माँ स्कूल भेजती थी। क्या तुम मम्मी से अब भी डरते हो या मेरी तरह गुड ब्वाय बनकर रहना चाहते हो। लेकिन एक बात बताओ हर वक्त तुम सफ़ेद लिबास में क्यों रहते हो। जानते हो बुड्ढे से दिखने लगते हो। और तुम अभी बुड्ढे नहीं हुए हो, आज ही तो तुम्हारा जन्मदिन है।
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दादू पता है जब तुमने मेरे लिए लिखा था...जंगल जंगल बात चली है पता चला है, चढ्ढी पहन के फूल खिला है फूल खिला है... तब मैं मोगली बन गया था। और अपनी हिरण छपी चढ्ढी पहनकर पूरे घर में दौड़ा फिरता था। फिर तुमने लिखा अ आ इ ई, अ आ इ ई, मास्टर जी की आ गयी चिट्ठी... और मैं खेल खेल में लिखना सीख गया।

और जब तुमने लिखा, हमको मन की शक्ति देना, मन विजय करें...तो मैं स्कूल में था और मन, अच्छाई, बुराई समझने के करीब जाने लगा। अब तुम खुद चलकर ये कहने आए, प्यार इकतरफा न होता है न होगा... तब मैं किशोरवस्था को पार कर युवा अवस्था की दहलीज पर पांव रख रहा था। कीसी की सुनने को तैयार न था। पर तुम दुलारते हुए आकर्षण और प्यार के अंतर को समझाने ले गए।
फिर जब समुद्र की हवा की तरह ही हवा नमक इश्क़ का लेकर आई तो ये लबों को छूता हुआ जुबां से लग गया। तब मैं तुम्हारे पास खुद दौड़ा दौड़ा आया। तुमने सीने से लगा लिया। और मैं बसंत और पतझड़ के तमाम रंगों से गुलज़ार हो गया। लव यू दादू...


(*Parts of artwork have been borrowed from the internet, with due thanks to the owner of the photograph/art)

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