और जिस्म पर 80 घाव लिए राणा सांगा मिल गए...
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हुआ यूं कि शुक्रवार शाम को ऑफिस सहकर्मियों के साथ आभानेरी जाने का प्लान बन गया। आभानेरी यानी कि आभानगरी। यह नगर राजस्थान के दौरा जिले में बसा है। हमारे अलवर से कोई 70 किलोमीटर की दूरी पर। योजना के तहत शनिवार सुबह छह बजे निकलना था। पत्रिकारिता पेशे में रात में काम करने वालों को घूमने की एक ही कीमत चुकानी होती है। नींद की कुर्बानी। रात में एक-दो-तीन बजे तक काम करो और सुबह बिना सोए ही घूमने कट लो। क्योंकि हमारा कोई सामूहिक साप्ताहिक अवकाश नहीं होता। जिंदगी में सनडे के कोई मायने नहीं हैं। इसलिए अगर एक साथ जाना है तो नींद को टाटा कहो और घूमकर शाम तक वापसी कर ऑफिस में हाजिर हो जाओ।
शुक्रवार रात ऑफिस से लौटकर सुबह साढ़े पांच का अलार्म लगाया लेकिन इतनी गहरी नींद आई की अलार्म का पता ही नहीं चला। जैसे तैसे छह बजे नींच खुली। सिर भयानक भारी और आंखों में जलन। देखा तो फोन में किसी साथी की मिस्ड कॉल भी नहीं। समझ गया कि वे भी जागे नहीं हैं। उन्हें फोन लगाया नहीं उठा। दो-तीन बार और लगाया नहीं उठा। इसके बाद छोटे भाई को जगाया। और हम तैयार हो गए। सात बजे के करीब फिर फोन किया तो साथी राजकमल ने फोन पिक किया। मैंने उन्हें फटाफट तैयार होने को कहा। इस तरह हम आठ बजे शहर से निकल पाए।
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प्रकृति कर रही जहां हमारे लिए हलाहल पीने वाले का अभिषेक...
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आभानेरी के सफर में हमने पहला पड़ाव झाझीरामपुर तय किया है। हमें बताया गया है कि यहां एक खूबसूरत झरना है। यह स्थान अलवर से करीब 50 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इसके लिए अलवर-जयपुर मेगा हाईवे को छोड़कर बसवा होकर जाना है (रेल मार्ग पर बसवा स्टेशन अलवर और बांदीकुई के बीच मेें पड़ता है)। रास्ते में एक जगह ठहर कर हमने चाय की चुस्कियां ली। ढाबे पर मौजूद लोगों से झाझीरामपुर का रास्ता समझा और हम फिर चल दिए। मेगा हाईवे पर रफ्तार की आजादी के चलते बसवा के लिए हमें जहां मुड़ना था हम उससे कुछ किलोमीटर आगे निकल गए। फिर एक सज्जन से पूछा तो उन्होंने उसी स्थान से बाई ओर एक पगडंडी की ओर इशारा कर दिया। कहा, इससे भी हम बसवा पहुंच सकते हैं। फिर क्या मेगा हाईवे पर 70 की स्पीट से दौड़ रही बाइकें पगडंडियों पर हिचकोले खाने का लुत्फ लेने लगी। कुछ ही देर में हम बसवा रेलवे स्टेशन के करीब पहुंच गए। नियम का उल्लंघन कर औरों को देख हमने भी फाटक के नीचे से अपनी बाइके निकाली (हालांकि हमने देख लिया था कि समीप में रेलकर्मी ट्रैक पर वेल्डिंग का काम कर रहे थे, मतलब ट्रेन आने में अभी देरी है) और स्टेशन के करीब से होकर बसवा नगर में प्रवेश कर गए।
यहाँ एक बार और रास्ता पूछा और हम झाझीरामपुर की तरफ बढ़ने लगे। न जाने क्यों मुझे बसवा में भी ब्रज के नगरों जैसा अहसास हो रहा है। वैसे ही सकरी गलियां। वैसी ही घरों से उठती धूप, कपूर और पुष्पों की सुगंध। कुल मिलाकर मुझे यहां श्याम सलोने की मौजूदगी का अहसास हो रहा है। हालांकि इसके बारे में पता भी नहीं किया कि बसवा कन्हैया से कोई संबंध रखता भी है या नहीं। वैसे राजस्थान के दौसा, भरतपुर, धौलपुर, अलवर जिलों में किसी न किसी रूप में ब्रज व्याप्त है। कभी पहनावे में, कभी बोली में तो कभी भोजन के रूप में।
बसवा बिना रुके हम झाझीरामपुर की ओर बढ़ते हैं।
रास्ता घेरकर चल रही बकरियों के झुंडों को हॉर्न देते हुए आधे घंटे के अंदर ही हम झाझीरामपुर पहुंच गए। अरावली पर्वत श्रृंखला से घिरा सुंदर गांव है झाझीरामपुर। यहां प्राचीन 11 रुद्र महादेव मंदिर और संकट मोचन हनुमान मंदिर है। और यहीं पक्की सड़क भी समाप्त हो गई। लेकिन हम मंदिरों को पारकर आगे बढ़ने लगे। क्योंकि हम तो झरने की तलाश में आए हैं। ऊबड़-खाबड़ रास्ता शुरू होने से पहले ही पूछने पर पता चला कि यहां कोई झरना है ही नहीं। हम अवाक। झरना नहीं है मतलब, हमें तो बताया गया कि यहां झरना है। इस पर बुजुर्ग ने स्थानीय भाषा में कहा कि देख भाई अगर मुझे परेशान करना होता तो मैं आगे जाने को कह देता लेकिन मैं झूठ क्यों कहूं। फिर एक युवक ने बताया कि झरना तो नहीं यहां प्राचीन रुद्र महादेव मंदिर में एक कुंड है। जिसमें बारहों महीने प्राकृतिक श्रोत से पानी आता है। इसके बाद कौतूहल और आस्था का संगम लिए हम मंदिर की ओर बढ़े। कुंड के बारे में बताने वाले युवक ने मंदिर जाने का इतनी बार आग्रह किया कि हमें लगा कि यह पूजा-पाठ के लिए दबाव बनाकर रुपए ऐठने की फिराक में है। लेकिन मंदिर में प्रवेश के साथ ही हम गलत साबित हो गए। इस प्राचीन मंदिर में ऐसा कोई आडंबर था ही नहीं। युवक भी अंदर नहीं आया।
महादेव का यह प्राचीन मंदिर इतना भव्य तो नहीं है लेकिन सादेपन से महक रहा है। मंदिर के अंदर मध्य में भगवान शिव, मां पार्वती के साथ विराजमान हैं और इर्द-गिर्द 10 शिव लिंग स्थापित हैं। इन सभी का प्राकृति अनवरत रूप से जलाभिषेक कर रही है। अपने आप में अद्भुत है यह मंदिर। बगल में ही कुंड है। जिसमें गौमुख से जल धारा बह रही है। जल के इस श्रोत को देखते हुए मन में एक ही खयाल आया है कि राजस्थान को आज भी 80 फीसदी देशवासी सिर्फ रेगिस्तान के रूप में ही जानते हैं। उन्हे फिल्मों आदि के माध्यम से आखिर दिखाया भी तो इतना ही गया है। जबकि भारत का यह राज्य विवधता की खान है। यहां रेगिस्तान ही नहीं पहाड़, झरने, झील से लेकर बर्फबारी तक का लुत्फ उठाया जा सकता है।
हम कुछ समय वहां बिताने के बाद बगल के संकट मोचन हनुमान मंदिर में दर्शन के लिए चले आए। दर्शन कर प्रसाद ग्रहण करने के बाद हम आभानेरी की ओर रुख करने के लिए तैयार हो गए हैं। इसके लिए हमें वापस फिर बसवा जाना है...
क्रमश...
यहीं होगा सांगा से सामना...।
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हुआ यूं कि शुक्रवार शाम को ऑफिस सहकर्मियों के साथ आभानेरी जाने का प्लान बन गया। आभानेरी यानी कि आभानगरी। यह नगर राजस्थान के दौरा जिले में बसा है। हमारे अलवर से कोई 70 किलोमीटर की दूरी पर। योजना के तहत शनिवार सुबह छह बजे निकलना था। पत्रिकारिता पेशे में रात में काम करने वालों को घूमने की एक ही कीमत चुकानी होती है। नींद की कुर्बानी। रात में एक-दो-तीन बजे तक काम करो और सुबह बिना सोए ही घूमने कट लो। क्योंकि हमारा कोई सामूहिक साप्ताहिक अवकाश नहीं होता। जिंदगी में सनडे के कोई मायने नहीं हैं। इसलिए अगर एक साथ जाना है तो नींद को टाटा कहो और घूमकर शाम तक वापसी कर ऑफिस में हाजिर हो जाओ।
शुक्रवार रात ऑफिस से लौटकर सुबह साढ़े पांच का अलार्म लगाया लेकिन इतनी गहरी नींद आई की अलार्म का पता ही नहीं चला। जैसे तैसे छह बजे नींच खुली। सिर भयानक भारी और आंखों में जलन। देखा तो फोन में किसी साथी की मिस्ड कॉल भी नहीं। समझ गया कि वे भी जागे नहीं हैं। उन्हें फोन लगाया नहीं उठा। दो-तीन बार और लगाया नहीं उठा। इसके बाद छोटे भाई को जगाया। और हम तैयार हो गए। सात बजे के करीब फिर फोन किया तो साथी राजकमल ने फोन पिक किया। मैंने उन्हें फटाफट तैयार होने को कहा। इस तरह हम आठ बजे शहर से निकल पाए।
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प्रकृति कर रही जहां हमारे लिए हलाहल पीने वाले का अभिषेक...
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आभानेरी के सफर में हमने पहला पड़ाव झाझीरामपुर तय किया है। हमें बताया गया है कि यहां एक खूबसूरत झरना है। यह स्थान अलवर से करीब 50 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। इसके लिए अलवर-जयपुर मेगा हाईवे को छोड़कर बसवा होकर जाना है (रेल मार्ग पर बसवा स्टेशन अलवर और बांदीकुई के बीच मेें पड़ता है)। रास्ते में एक जगह ठहर कर हमने चाय की चुस्कियां ली। ढाबे पर मौजूद लोगों से झाझीरामपुर का रास्ता समझा और हम फिर चल दिए। मेगा हाईवे पर रफ्तार की आजादी के चलते बसवा के लिए हमें जहां मुड़ना था हम उससे कुछ किलोमीटर आगे निकल गए। फिर एक सज्जन से पूछा तो उन्होंने उसी स्थान से बाई ओर एक पगडंडी की ओर इशारा कर दिया। कहा, इससे भी हम बसवा पहुंच सकते हैं। फिर क्या मेगा हाईवे पर 70 की स्पीट से दौड़ रही बाइकें पगडंडियों पर हिचकोले खाने का लुत्फ लेने लगी। कुछ ही देर में हम बसवा रेलवे स्टेशन के करीब पहुंच गए। नियम का उल्लंघन कर औरों को देख हमने भी फाटक के नीचे से अपनी बाइके निकाली (हालांकि हमने देख लिया था कि समीप में रेलकर्मी ट्रैक पर वेल्डिंग का काम कर रहे थे, मतलब ट्रेन आने में अभी देरी है) और स्टेशन के करीब से होकर बसवा नगर में प्रवेश कर गए।
यहाँ एक बार और रास्ता पूछा और हम झाझीरामपुर की तरफ बढ़ने लगे। न जाने क्यों मुझे बसवा में भी ब्रज के नगरों जैसा अहसास हो रहा है। वैसे ही सकरी गलियां। वैसी ही घरों से उठती धूप, कपूर और पुष्पों की सुगंध। कुल मिलाकर मुझे यहां श्याम सलोने की मौजूदगी का अहसास हो रहा है। हालांकि इसके बारे में पता भी नहीं किया कि बसवा कन्हैया से कोई संबंध रखता भी है या नहीं। वैसे राजस्थान के दौसा, भरतपुर, धौलपुर, अलवर जिलों में किसी न किसी रूप में ब्रज व्याप्त है। कभी पहनावे में, कभी बोली में तो कभी भोजन के रूप में।
बसवा बिना रुके हम झाझीरामपुर की ओर बढ़ते हैं।
रास्ता घेरकर चल रही बकरियों के झुंडों को हॉर्न देते हुए आधे घंटे के अंदर ही हम झाझीरामपुर पहुंच गए। अरावली पर्वत श्रृंखला से घिरा सुंदर गांव है झाझीरामपुर। यहां प्राचीन 11 रुद्र महादेव मंदिर और संकट मोचन हनुमान मंदिर है। और यहीं पक्की सड़क भी समाप्त हो गई। लेकिन हम मंदिरों को पारकर आगे बढ़ने लगे। क्योंकि हम तो झरने की तलाश में आए हैं। ऊबड़-खाबड़ रास्ता शुरू होने से पहले ही पूछने पर पता चला कि यहां कोई झरना है ही नहीं। हम अवाक। झरना नहीं है मतलब, हमें तो बताया गया कि यहां झरना है। इस पर बुजुर्ग ने स्थानीय भाषा में कहा कि देख भाई अगर मुझे परेशान करना होता तो मैं आगे जाने को कह देता लेकिन मैं झूठ क्यों कहूं। फिर एक युवक ने बताया कि झरना तो नहीं यहां प्राचीन रुद्र महादेव मंदिर में एक कुंड है। जिसमें बारहों महीने प्राकृतिक श्रोत से पानी आता है। इसके बाद कौतूहल और आस्था का संगम लिए हम मंदिर की ओर बढ़े। कुंड के बारे में बताने वाले युवक ने मंदिर जाने का इतनी बार आग्रह किया कि हमें लगा कि यह पूजा-पाठ के लिए दबाव बनाकर रुपए ऐठने की फिराक में है। लेकिन मंदिर में प्रवेश के साथ ही हम गलत साबित हो गए। इस प्राचीन मंदिर में ऐसा कोई आडंबर था ही नहीं। युवक भी अंदर नहीं आया।
महादेव का यह प्राचीन मंदिर इतना भव्य तो नहीं है लेकिन सादेपन से महक रहा है। मंदिर के अंदर मध्य में भगवान शिव, मां पार्वती के साथ विराजमान हैं और इर्द-गिर्द 10 शिव लिंग स्थापित हैं। इन सभी का प्राकृति अनवरत रूप से जलाभिषेक कर रही है। अपने आप में अद्भुत है यह मंदिर। बगल में ही कुंड है। जिसमें गौमुख से जल धारा बह रही है। जल के इस श्रोत को देखते हुए मन में एक ही खयाल आया है कि राजस्थान को आज भी 80 फीसदी देशवासी सिर्फ रेगिस्तान के रूप में ही जानते हैं। उन्हे फिल्मों आदि के माध्यम से आखिर दिखाया भी तो इतना ही गया है। जबकि भारत का यह राज्य विवधता की खान है। यहां रेगिस्तान ही नहीं पहाड़, झरने, झील से लेकर बर्फबारी तक का लुत्फ उठाया जा सकता है।
हम कुछ समय वहां बिताने के बाद बगल के संकट मोचन हनुमान मंदिर में दर्शन के लिए चले आए। दर्शन कर प्रसाद ग्रहण करने के बाद हम आभानेरी की ओर रुख करने के लिए तैयार हो गए हैं। इसके लिए हमें वापस फिर बसवा जाना है...
क्रमश...
यहीं होगा सांगा से सामना...।
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