भानगढ़ : एक सफ़र भूतियाना...
अपने देश में क्या दुनियाँ भर में भूत-प्रेत से जुड़ी बातों को सुनने और जानने का अलग ही क्रेज है। कोई इनसे डरता है, कोई नहीं डरता। कोई विश्वास करता है, कोई नहीं करता। लेकिन जानना और सुनना सभी चाहते हैं. आप किस्सा शुरू करो हर कोई आपको डूबकर सुनने को बेताब हो जाएगा.
तो हम भी दुनिया से अलग नहीं हैं।इन सबमें अपना भी ख़ासा इंटरेस्ट हैं. दिसंबर में अलवर आने से पहले ही भानगढ़ के बारे में काफ़ी कुछ सुना था. यहाँ आने बाद से ही भानगढ़ जाने की योजना बनने लग गई.
आज से करीब एक महीना पहले अगले दिन सुबह निकलने की तैयारी थी. प्लान फाइनल करने के एक घंटे बाद ही अचानक मुझे बुखार आ गया. अगले एक घंटे में मेरी हालत और खराब हो गई. फिर तीन रोज बुखार रहा. प्लान कैंसल होना ही था. इससे मन में एक आशंका ने भी घर कर लिया. इसके दो साप्ताह बाद फिर प्लान किया. बैग रेडी, केमरा बैटरी चार्ज्ड. सुबह 4.30 निकलना था. लेकिन हम फिर नहीं जा पाए. पहला प्लान फेल हुआ था, दूसरा भी हो गया. अब तो लगा कुछ तो खेल है भाई. क्या कोई रोक रहा है वहाँ जाने से....
तो हम भी दुनिया से अलग नहीं हैं।इन सबमें अपना भी ख़ासा इंटरेस्ट हैं. दिसंबर में अलवर आने से पहले ही भानगढ़ के बारे में काफ़ी कुछ सुना था. यहाँ आने बाद से ही भानगढ़ जाने की योजना बनने लग गई.
आज से करीब एक महीना पहले अगले दिन सुबह निकलने की तैयारी थी. प्लान फाइनल करने के एक घंटे बाद ही अचानक मुझे बुखार आ गया. अगले एक घंटे में मेरी हालत और खराब हो गई. फिर तीन रोज बुखार रहा. प्लान कैंसल होना ही था. इससे मन में एक आशंका ने भी घर कर लिया. इसके दो साप्ताह बाद फिर प्लान किया. बैग रेडी, केमरा बैटरी चार्ज्ड. सुबह 4.30 निकलना था. लेकिन हम फिर नहीं जा पाए. पहला प्लान फेल हुआ था, दूसरा भी हो गया. अब तो लगा कुछ तो खेल है भाई. क्या कोई रोक रहा है वहाँ जाने से....
खैर कल रात कोई पहले से प्लानिंग नहीं थी. रात ढाई बजे चाय पीते हुए अचानक मूड हुआ और दो घंटे बाद मैं और साथी Rajkamal Vyas निकल भी लिए.
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यहाँ आप जान लें कि राजस्थान के भानगढ़ किले को भूतिया किले के रूप में जाना जाता है. कुछ समय पूर्व एक टीवी चैनल ने इसे एशिया का most haunted place भी घोषित कर दिया. इंटरनेट से लेकर स्थानीय लोगों के पास तक इससे जुड़े डरावने क़िस्सों और कहानियों की भरमार है. यह तन्त्र साधना का एक केन्द्र भी माना जाता है. सूर्यास्त के बाद और सूर्योदय से पहले यहाँ प्रवेश की मनाही है. इस अवधि में यहाँ न बंदर रुकते हैं न ही चारे की तलाश में आए मवेशी. रात को यहाँ चीखें और रोने की आवाज़े सुनी जाती हैं।
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हम सुबह साढ़े सात बजे पहुँच गए. इससे पहले रास्ते में देहाती चाय के साथ भैंस का ताज़ा कच्चा दूध पीकर बचपन की यादें ताज़ा की. राह में लोगों से भानगढ़ की कहानियाँ भी सुनी.
यहाँ पहुँचने के बाद किले के बहार बाइक पार्क की। बड़े ही रोमांच के साथ किले की चारदीवारी में प्रवेश किया. घुसते ही एक मंदिर है, यहाँ स्थानीय लोग पूजन-अर्चन के लिए आते हैं। आगे बढ़े, दिन था ऐसे में कुछ अप्रत्याशित घटने की आशंका कम ही थी. सामने ही किला दिख गया। इसे देख ऐसा लगा जैसे यह किसी त्रासदी का शिकार हो। अब यह खंडहर हो चुका है. कभी यहाँ बहुत संपन्न बाज़ार लगता था इसकी कहानी बयाँ करने को उसके अवशेष ही बांकी हैं. यहाँ के माहौल में अजब उदासी है. यह उदासी भूतिया अनुभूतियों से भी डरावनी लगी. कला की दृष्टि से सुरक्षा की दृष्टि से तैयार किया गया एक नायाब नमूना आज खंडहर में तब्दील हो चुका है. अब भी अंदर जाने की उत्किसुकता बरकरार थी।अंदर घुसते ही मायूसी के साथ उदासी बढ़ती गई। किले में ऊपर जाने के बाद उस जगह को जल्द से जल्द छोड़ने को जी कर रहा था. यहाँ जाने से पहले सबने भूतों की कहानी सुनाई थी लेकिन कोई उस वीरने की उदासी के बारे में एक लफ्ज़ भी न बोला था. यहाँ उदासी हवा में तैरती है।
इस दौरान हमने कुछ ऐसा भी देखा जिससे लगा यहाँ तंत्र साधना की जाती है. किले के अंधेरे में चिमगादड़ के झूण्डों की आवाज़ सच में डरावनी लगी.... लेकिन भूत अंकल से अपना सामना नहीं हुआ. खैर दिन भी था जब चिमगादड़ छिप कर बैठे थे तो वो भला चिलचिलाती धूप में हमसे मिलने क्यों आते. यहाँ सुरंग भी हैं, हो सकता है भूत अंकल वहाँ रेस्ट कर रहे हों पर उनमें घुसने की हिम्मत अपने में नहीं थी...
दोस्तों कुछ ऐसी रही अपनी भानगढ़ ट्रिप. आप भी घूमने जाइए क्या पता आपको वहाँ भूतों की मौजूदगी का अहसास हो जाए... अगर न भी हुआ तो कौन सा आप कहानी क़िस्सों पर विश्वास करना छोड़ देंगे... है कि नहीं....!
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यहाँ आप जान लें कि राजस्थान के भानगढ़ किले को भूतिया किले के रूप में जाना जाता है. कुछ समय पूर्व एक टीवी चैनल ने इसे एशिया का most haunted place भी घोषित कर दिया. इंटरनेट से लेकर स्थानीय लोगों के पास तक इससे जुड़े डरावने क़िस्सों और कहानियों की भरमार है. यह तन्त्र साधना का एक केन्द्र भी माना जाता है. सूर्यास्त के बाद और सूर्योदय से पहले यहाँ प्रवेश की मनाही है. इस अवधि में यहाँ न बंदर रुकते हैं न ही चारे की तलाश में आए मवेशी. रात को यहाँ चीखें और रोने की आवाज़े सुनी जाती हैं।
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हम सुबह साढ़े सात बजे पहुँच गए. इससे पहले रास्ते में देहाती चाय के साथ भैंस का ताज़ा कच्चा दूध पीकर बचपन की यादें ताज़ा की. राह में लोगों से भानगढ़ की कहानियाँ भी सुनी.
यहाँ पहुँचने के बाद किले के बहार बाइक पार्क की। बड़े ही रोमांच के साथ किले की चारदीवारी में प्रवेश किया. घुसते ही एक मंदिर है, यहाँ स्थानीय लोग पूजन-अर्चन के लिए आते हैं। आगे बढ़े, दिन था ऐसे में कुछ अप्रत्याशित घटने की आशंका कम ही थी. सामने ही किला दिख गया। इसे देख ऐसा लगा जैसे यह किसी त्रासदी का शिकार हो। अब यह खंडहर हो चुका है. कभी यहाँ बहुत संपन्न बाज़ार लगता था इसकी कहानी बयाँ करने को उसके अवशेष ही बांकी हैं. यहाँ के माहौल में अजब उदासी है. यह उदासी भूतिया अनुभूतियों से भी डरावनी लगी. कला की दृष्टि से सुरक्षा की दृष्टि से तैयार किया गया एक नायाब नमूना आज खंडहर में तब्दील हो चुका है. अब भी अंदर जाने की उत्किसुकता बरकरार थी।अंदर घुसते ही मायूसी के साथ उदासी बढ़ती गई। किले में ऊपर जाने के बाद उस जगह को जल्द से जल्द छोड़ने को जी कर रहा था. यहाँ जाने से पहले सबने भूतों की कहानी सुनाई थी लेकिन कोई उस वीरने की उदासी के बारे में एक लफ्ज़ भी न बोला था. यहाँ उदासी हवा में तैरती है।
इस दौरान हमने कुछ ऐसा भी देखा जिससे लगा यहाँ तंत्र साधना की जाती है. किले के अंधेरे में चिमगादड़ के झूण्डों की आवाज़ सच में डरावनी लगी.... लेकिन भूत अंकल से अपना सामना नहीं हुआ. खैर दिन भी था जब चिमगादड़ छिप कर बैठे थे तो वो भला चिलचिलाती धूप में हमसे मिलने क्यों आते. यहाँ सुरंग भी हैं, हो सकता है भूत अंकल वहाँ रेस्ट कर रहे हों पर उनमें घुसने की हिम्मत अपने में नहीं थी...
दोस्तों कुछ ऐसी रही अपनी भानगढ़ ट्रिप. आप भी घूमने जाइए क्या पता आपको वहाँ भूतों की मौजूदगी का अहसास हो जाए... अगर न भी हुआ तो कौन सा आप कहानी क़िस्सों पर विश्वास करना छोड़ देंगे... है कि नहीं....!
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