शनिवार, 15 अक्टूबर 2016

11 साल की बच्ची में क्या देख लेते हैं लोग...?
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वैसे तो ख़बरों की दुनिया में रहकर भी ख़बरों से बेखबर रहने की कोशिश रहती है। लेकिन कुछ खबरें क्या, कहाँ, कब, किसने, क्यों और कैसे से परे निकल जाती हैं। जिन्हें पढ़ते हुए सामान्य होने के लिए आंखें बंद कर दो-चार गहरी साँसें लेनी पड़ती हैं। ये ऐसी खबरें हैं जिन्हें पढ़ने पर अंतरिक्ष में हमारी उपलब्धियों पर गर्व करने की जगह वह थोथी लगती हैं। ऐसा लगता है कि हम सिर पर तो ताज लिए हैं लेकिन पांव की बेमाइयां फंटी और वे कीचड़ से सने हैं। बात खबर की ही करते हैं।
कल अलवर के एक गांव से एक बच्ची को एक महिला के चंगुल से पुलिस ने आज़ाद कराया। महिला उससे देह व्यापार कराती थी। महिला के मुताबिक वह उसे कोलकाता से 10 हजार में खरीद कर लाई थी। उसके माँ-बाप उसे यहां खुद छोड़कर गए। अब जब महिला उसे खरीद कर लाई थी तो उसके लिए वह व्यापार की सामग्री ही हुई। अगर वह उसका इस्तेमाल कर पैसे कमाती है तो क्या बुरा है...? लेकिन माँ-बाप...।
बच्ची की उम्र पता है न महज 11 वर्ष। उसे तो नाबालिग कहते भी नहीं बनता। ऐसे स्थानों पर जाने का मेरा कोई अनुभव भी नहीं है। जो कुछ जाना है, अखबारों, मैगजीनों और फिल्मों की ही नज़र से जाना। हालांकि मन में जरूर है कि कभी हिम्मत जुटाकर समाज के इस स्याह पहलू से भी रूबरू होना है।
आप फिर सोचिए महज 11 वर्ष की बच्ची। हमारे घरों में भी तो इस उम्र की बेटी और बहने हैं। इस उम्र में उसके शरीर का विकास ही क्या होता है। उससे हैवानियत करने कैसे पहुँच जाते हैं लोग। उसमें ऐसा क्या देख लेते हैं लोग। लेकिन इन घटनाओं से अब चौकते नहीं आप। न ही किसी चैनल पर कोई एंकर गला फाड़कर चिल्लाता है। न ही यह किसी पार्टी के लिए मुद्दा बनता है। न इसके लिए कोई कैंडल मार्च। न ही कोई फ्लैट और नकद राशि दिए जाने की घोषणा...। क्यों...।
क्या यह सामूहिक दुष्कर्म नहीं है। क्या इसके साथ जबरदस्ती करने वाले रेपिस्ट नहीं हैं। वजह क्या है...? सफ़ेदपोश, खाकी और सभ्य समाज के नकाब के पीछे छिपे दानवी चेहरों का देहव्यापर से किसी न किसी रूप में सम्बन्ध होना...छी...।
अरे वो महज 11 साल की बच्ची है...11 साल की।
हमारे और आपके लिए यह दुनिया कितनी खूबसूरत है, लेकिन वो इसका कौन सा रंग देख कर खुश हो सके। पुलिस की मदद से मुक्त तो हो गई लेकिन जाए किसके पास...। उन माँ-बाप के पास जो खुद चलकर उसे नर्क में धकेल गए थे।
कितना अजीब लगता है कि जिस दौर में हम जानवरों के अधिकारों के लिए सजग होकर लड़ाई लड़ रहे हैं। उसी समय मनुष्य के अधिकारों का यह हश्र है। अब शोक, संताप नहीं करिए...जागिए! मनुष्य होने का फ़र्ज़ अदा कीजिए। अगर गौर करेंगे तो मानवता को शर्मशार कर देने वाली ऐसी गतिविधियों को अपने आसपास ही होते महसूस कर सकेंगे। आज कई एनजीओ इसके लिए काम भी कर रहे हैं। 1098 भी इसी प्रकार की सेवा है। आप यह टोल फ्री नंबर डायल कर इसकी सूचना देकर भी मदद कर सकते हैं।
आप जिम्मेदार नागरिक बनकर देश और तिरंगे की इज़्ज़त से पहले सच्चे मनुष्य होने की ओर कदम बढ़ाइये... क्योंकि ये नन्ही लाड़ो ही राष्ट्र की सच्ची शान और हमारा अभिमान हैं।
अंत में माफ़ी गुड़िया, मैं तुम्हारे लिए कुछ न कर पाया लेकिन वादा है कि आज से सजग रहकर किसी भी कली को खिलने से पहले मुरझाने नहीं देने की पूरी कोशिश करूंगा... क्या आप भी इस नन्ही गुड़िया से वादा करते हैं...।



(*Parts of artwork have been borrowed from the internet, with due thanks to the owner of the photograph/art)

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