रविवार, 16 अक्तूबर 2016

अगर उम्मीद से दुनिया कायम है तो, इसका थोपा जाना 'दुनिया' का अंत भी है...

कभी-कभी हमारे इर्द-गिर्द ऐसा भी घटता है जिसे लिखे बिना रहा नहीं जाता. लिखने के पीछे का उद्देश्या कोई संदेश देना नहीं, बस घटना से अंदर पनपे आक्रोश से फटते माथे को ठंडा कर देने की कोशिश मात्र होती है. आज फिर कुछ ऐसा ही घटा है, जो आँखों को गीला और रूह को झुलसा गया है. 
खबर उत्तर प्रदेश की राजधानी से, यहाँ जिंदगी मौत से हारी है. एक छात्र ने बड़ी माँ की साड़ीको फंदा बनाकर, खुद को दुनियाँ में लाए जाने के फ़ैसले को ग़लत साबित कर दिया है. हालाँकि उस मासूम ने इसके लिए ज़िम्मेदार कॉलेज के एचओडी को ठहराया है...और उम्मीदों को पूरा न कर पाने के लिए पिता से माफ़ी मांगी....
आप का अपना नज़रिया होगा...होना भी चाहिए...
लेकिन मुझे नहीं लगता किसी की प्रताड़ना शक्ति के उस पुंज को आत्माहत्या के लिए विवश कर सकती है. प्रताडित करने वाले से लड़ने में वह सक्षम होगा, लेकिन लड़ इस लिए नहीं पाया क्योंकि उसके कंधों पर उम्मीदों का बोझ था. उसे डर लड़ाई हारने का नहीं, इन उम्मीदों के बिखर जाने का था. ये उम्मीदें, उसने खुद कंधों पर नहीं उठाईं थी, आप ने उसके कंधों पर लाद कर घर से भेजा था उसे. जब भी वह कॉलेज के दबाव से मन हल्का करने के लिए घर आता, आप उम्मीदों का बोझ थोड़ा और बढ़ा देते.
अब आप इसे मेरी कोरी कल्पना करार देने की कोशिश ना करिएगा क्योंकि इन उम्मीदों को ढोने की कोशिश मैं कर चुका हूँ. अपने दोस्तों, भाइयों और जिंदगी में टकराए न जाने कितने लोगों को झुके कंधों से इन उम्मीदों को ढोते देखा है मैने.
लेकिन मैं जानना चाहता हूँ आप सब ऐसा क्यों करते हैं. क्या पौधे कि मजबूरी है कि अगर आपने समय से उसे खाद और पानी दिया है तो वह आप को पुष्प और फल दे ही. क्या आप उसे आज़ाद नहीं छोड़ सकते जैसे जंगलों में उगने वाले पेड़ और पौधे आज़ाद होते हैं. उन्हें भी तो कोई खाद और पानी देता ही है ना. आप सब क्यों घर का सूनापन दूर करने, परिवार की ज़रूरत, सामाजिकता, बुढ़ापे की लाठी बनाने के लिए एक जीवन का सृजन कर बैठते हैं. क्या इस सृजन को भी आप फैक्टरी में तैयार उत्पाद के रूप में ही देखते हैं, जो आप की ज़रूरतों को पूरा करने के लिए बनाया गया है.
मुझे पता है, आप उसे बेइंतेहा प्यार करते हैं, उसपर अपनी जिंदगी न्योछावर करने को तैयार हैं. उसकी आँखों से निकले एक आँसू के लिए आप दुनिया से लड़ जाने को तैयार हैं. फिर क्यों आप अपनी उम्मीदों को उसके गले का फंदा बनते नहीं देख पाते.
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अगर आप बिना किसी उम्मीद के ही पौधे को खाद और पानी देने में खुशी ढूढ़ लें तो इसी पौधे का पुष्प आपको आनंदित कर देगा, उसकी खुशबू आप के रोम रोम को खिला देगी (और फिर गीता में कृष्ण भी तो यही कहते हैं... मेरी नहीं तो उन्ही की मान लीजिए).
परमपिता की बगिया में अनंत प्रकार के फूल हर सुबह खिलते हैं. कोई अपनी खुशबू तो कोई सौंदर्य से अपनी पहचान बनाता है. आप इन फूलों को स्वच्छन्द भाव से खिलने दो. इनका मुकाम सिर्फ़ आपकी बालकनी नहीं पूरी दुनिया को महकाना है. आप तो माली की भूमिका को स्वीकार करो. और ईश्वर द्वारे बनाए इस रंगमंच में अपने किरदार को खुलकर जी लो...यही जीवन है...
इसी में सारा आनंद...परमानंद... स्वर्ग...जन्नत...मोक्ष सब छिपा है...



(*Parts of artwork have been borrowed from the internet, with due thanks to the owner of the photograph/art)

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