I am prepared to concede that Gandhiji undergo suffering for the shake of nation. I shall bow in respect to the service and to him. But even this servant of the country had no right to vivisect the country by deceiving the people.
-Nathuram Godse
इन दिनों व्हाइ आइ एसेसिनेटेड गांधी पुस्तक पढ़ रहा हूं। इसमें नाथूराम गोडसे ने गांधीजी की हत्या की एक नहीं पूरी 150 वजह बताई हैं। पुस्तक को पढ़कर लगता है कि नाथूराम कोई सड़क छाप या सिरफिरा आदमी तो एकदम नहीं था। वह खुद को राष्ट्र भक्त समझता था, लेकिन हिंदू राष्ट्र भक्त। एक व्यक्ति के रूप में वह गांधीजी का बहुत सम्मान भी करता था। यही वजह है कि पूरी पुस्तक में हर जगह संबोधन गांधीजी कहकर ही किया गया है।
यहाँ सवाल ज़रूर उठता है कि एक सुलझे और समझदार आदमी के अंदर अमानवीय बीज कैसे बो दिए गये।... तो इसके मूल में भी तथाकथित धर्म ही मिलता है. इन तथाकथित धर्मों ने धर्म और अधर्म की ऐसी जटिल और व्यर्थ परिभाषाएँ गढ़ी कि मनुष्य इसे समझने के फेर में अपना मूल धर्म खो बैठा।
इसी की बानगी हिंदुओं का सर्वश्रेष्ठ धार्मिक साहित्य महाभारत है। इसमें धर्म और अधर्म का युद्ध भी मानवता की लाश पर ही हुआ था। अगर गांधी जी जैसा अहिंसा का पुजारी महाभारत का कोई पात्र होता तो वहां भी उस पात्र का अंत ऐसा ही होता, जैसा बिरला हाउस में हुआ। गांधीजी जैसा पात्र किसी बड़े धर्म में आप फिट नहीं बैठा सकते। कहीं जीजस तो कहीं पैगंबर का अंत करने के लिए बढ़ने वाले पहले गांधीजी का अंत करेंगे। यही नहीं कुछ पैगंबर की रक्षा के नाम पर भी गाँधी का सिर कलम कर देंगें।
गोडसे ने जो किया कहीं न कहीं यह विष हमारे धर्म ग्रंथों से ही निकलकर बाहर आया है। जबकि इन ग्रंथों को लिखने वालों ने तो कोशिश मीठा शहद बाँटने की की थी लेकिन इसकी व्याख्या करने वालों ने इसमें मतलब का चूना भी मिला दिया। और लोगों को धार्मिक विष हाथ लगा। गांधीजी के दौर में किसी को महावीर या बुद्ध के रूप में स्वीकार किया जाना संभव नहीं था। नहीं तो गांधी भी आज एक धर्म के रूप में जाने जाते।
अब देखिए बात गांधीजी की हत्या से शुरू की थी और पहुंच धर्म पर गई। दरअसल उनकी हत्या के मूल में तथाकथित धर्म ही तो है। पाकिस्तान बनने के पीछे तथाकथित धर्म है, इसके बाद गोडसे द्वारा उठाए गए कदम के पीछे तथाकथित धर्म है। और अफसोस इस बात का ही है कि हमने अब भी मूल धर्म को समझा नहीं। गौतम और महावीर ने अपना जीवन खपा दिया सिर्फ धर्म को समझाने में। लेकिन लोगों ने धर्म तो समझा नहीं दो नये धर्म ही बना डाले।
खैर धर्म अनंत धर्म कथा अनंता...
बापू की पुण्यतिथि पर उन्हें सादर नमन। बापू अफ़सोस आपको आज तक समझा ही नहीं गया। काश आप भी मनवता का अर्थ समझाने की जगह लोगों को एक नए धर्म की अफीम देकर गए होते। सच कहता हूँ असाराम के दौर में लाखों लोग धार्मिक नशे में धुत होकर झूम रहे होते।...
हालाँकि कुछ गाँधी भवनों में आज भी नित्य श्रद्धा की बाती प्रज्ज्वलित की जा रही है। उनका प्रिय भजन रघुपति राघव राजा राम गूँज रहा है....लव यू बापू।
(*Parts of artwork have been borrowed from the internet, with due thanks to the owner of the photograph/art)
-Nathuram Godse
इन दिनों व्हाइ आइ एसेसिनेटेड गांधी पुस्तक पढ़ रहा हूं। इसमें नाथूराम गोडसे ने गांधीजी की हत्या की एक नहीं पूरी 150 वजह बताई हैं। पुस्तक को पढ़कर लगता है कि नाथूराम कोई सड़क छाप या सिरफिरा आदमी तो एकदम नहीं था। वह खुद को राष्ट्र भक्त समझता था, लेकिन हिंदू राष्ट्र भक्त। एक व्यक्ति के रूप में वह गांधीजी का बहुत सम्मान भी करता था। यही वजह है कि पूरी पुस्तक में हर जगह संबोधन गांधीजी कहकर ही किया गया है।
यहाँ सवाल ज़रूर उठता है कि एक सुलझे और समझदार आदमी के अंदर अमानवीय बीज कैसे बो दिए गये।... तो इसके मूल में भी तथाकथित धर्म ही मिलता है. इन तथाकथित धर्मों ने धर्म और अधर्म की ऐसी जटिल और व्यर्थ परिभाषाएँ गढ़ी कि मनुष्य इसे समझने के फेर में अपना मूल धर्म खो बैठा।
इसी की बानगी हिंदुओं का सर्वश्रेष्ठ धार्मिक साहित्य महाभारत है। इसमें धर्म और अधर्म का युद्ध भी मानवता की लाश पर ही हुआ था। अगर गांधी जी जैसा अहिंसा का पुजारी महाभारत का कोई पात्र होता तो वहां भी उस पात्र का अंत ऐसा ही होता, जैसा बिरला हाउस में हुआ। गांधीजी जैसा पात्र किसी बड़े धर्म में आप फिट नहीं बैठा सकते। कहीं जीजस तो कहीं पैगंबर का अंत करने के लिए बढ़ने वाले पहले गांधीजी का अंत करेंगे। यही नहीं कुछ पैगंबर की रक्षा के नाम पर भी गाँधी का सिर कलम कर देंगें।
गोडसे ने जो किया कहीं न कहीं यह विष हमारे धर्म ग्रंथों से ही निकलकर बाहर आया है। जबकि इन ग्रंथों को लिखने वालों ने तो कोशिश मीठा शहद बाँटने की की थी लेकिन इसकी व्याख्या करने वालों ने इसमें मतलब का चूना भी मिला दिया। और लोगों को धार्मिक विष हाथ लगा। गांधीजी के दौर में किसी को महावीर या बुद्ध के रूप में स्वीकार किया जाना संभव नहीं था। नहीं तो गांधी भी आज एक धर्म के रूप में जाने जाते।
अब देखिए बात गांधीजी की हत्या से शुरू की थी और पहुंच धर्म पर गई। दरअसल उनकी हत्या के मूल में तथाकथित धर्म ही तो है। पाकिस्तान बनने के पीछे तथाकथित धर्म है, इसके बाद गोडसे द्वारा उठाए गए कदम के पीछे तथाकथित धर्म है। और अफसोस इस बात का ही है कि हमने अब भी मूल धर्म को समझा नहीं। गौतम और महावीर ने अपना जीवन खपा दिया सिर्फ धर्म को समझाने में। लेकिन लोगों ने धर्म तो समझा नहीं दो नये धर्म ही बना डाले।
खैर धर्म अनंत धर्म कथा अनंता...
बापू की पुण्यतिथि पर उन्हें सादर नमन। बापू अफ़सोस आपको आज तक समझा ही नहीं गया। काश आप भी मनवता का अर्थ समझाने की जगह लोगों को एक नए धर्म की अफीम देकर गए होते। सच कहता हूँ असाराम के दौर में लाखों लोग धार्मिक नशे में धुत होकर झूम रहे होते।...
हालाँकि कुछ गाँधी भवनों में आज भी नित्य श्रद्धा की बाती प्रज्ज्वलित की जा रही है। उनका प्रिय भजन रघुपति राघव राजा राम गूँज रहा है....लव यू बापू।
(*Parts of artwork have been borrowed from the internet, with due thanks to the owner of the photograph/art)
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