रविवार, 16 अक्टूबर 2016

I also used to Abuse Gandhi

मैं भी देता था बापू को गाली...
----------------
मेरा जन्म और पालन ऐसे माहौल में हुआ जहाँ गांधीजी के लिए सिर्फ और सिर्फ अपशब्द ही सुने। उन्होंने देश को बर्बाद कर दिया यही जाना। इसका असर यह हुआ कि बचपन में मैं भी उनके लिए न जाने क्या-क्या कहता था। अपनी हमजोली में अक्सर नाथूराम गोडसे के फैसले की तारीफ़ करता। जबकि गांधीजी के बारे में मेरी समझ इतनी ही थी कि 2 अक्टूबर को उनकी जयंती मनाई जाती है।
थोड़ा सबूर आने पर चीजों और उनके कारणों को जानने में रुचि पैदा होने लगी। इसी क्रम में गांधीजी के कुछ विचार मुझ तक पहुंचे। मैं उनको समझने का प्रयास करने लगा। फिर उनसे जुड़े कुछ संस्मरण सुने। अब उनको जानने की उत्कण्ठा जन्म ले चुकी थी। इसी दौरान उनकी आत्मकथा सत्य के प्रयोग हाथ लग गई। इसका एक-एक पन्ना सीढ़ी की तरह मुझे गांधीजी की ओर बढ़ाता ले गया। और जब यह किताब पूरी हुई तो मैं बुरी तरह आत्मग्लानि में डूब चुका था।
लेकिन जैसे-जैसे गांधीजी मेरे लिए बापू में परिवर्तित होते गए, आत्मग्लानि का भाव पिघलने लगा। बनावटीपन का खोल मेरे शारीर से उतरने लगा। अब बापू मुझे सरल और सहज बनाने लगे। शायद किसी भी मनुष्य के लिए सबसे कठिन हर परिस्थिति में सहज और सरल बने रहना ही है। आज भी जब मैं उनके दिखाए मार्ग से डिगता हूँ तो उनके विचार मेरी उंगली पकड़ वापस ले आते हैं। याद दिलाते हैं कि मुझे अपनी सहजता और सरलता खोनी नहीं है।
------
यहाँ मैं माफ़ी चाहूँगा कि मैंने गांधीजी को देश को आज़ादी दिलाने के लिए उनके योगदान के लिए नहीं जाना। मैंने तो उन्हें एक विचारधारा के रूप में जाना। वो विचारधारा जिसने दुनिया को सत्य और मानवता की सरलतम परिभाषा से परिचित कराया।
अंत में एक बात और अब अगर कोई मेरे सामने गांधीजी को गाली देता है तो मैं हंस देता हूँ। और बस इतना ही कहता हूँ कि तुम उन्हें जानते ही नहीं हो मौका मिले तो उन्हें जानने की कोशिश करना।



(*Parts of artwork have been borrowed from the internet, with due thanks to the owner of the photograph/art)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें