(अब मैं मानो मझधार में फंस चुका था...)
ट्रेन में मुझे दूसरी बार चक्कर आ चुका था। परेशान से ज्यादा मैं हैरान था। लोगों ने फिर से मुझे उठाकर पास की सीट पर बैठा दिया था। ऐसा भी नहीं था कि मुझे किसी प्रकार की कमजोरी महसूस हो रही हो। मैं साधारण तरीके से चल और उठ-बैठ रहा था। दिमाग सेंटर में आने के बाद मैं वापस अपनी सीट पर लौट गया। आगे की यात्रा करने की हिम्मत कुछ कमजोर पड़ रही थी, लेकिन मैं मन को समझा रहा था कि नहीं मैं तो जाऊंगा ही।
मुझे थोड़ा उदास देखकर पास में बैठे सज्जन ने पूछ लिया कि क्या हो गया परेशान दिख रहे हो। इससे पहले हुई वार्तालाप में मैंने उनसे यह साझा नहीं किया था कि मैं काठमांडु जा रहा हूं। लेकिन मैंने उन्हें दोबारा चक्कर आने की बात साझा करने के यह भी बता दिया कि मैं काठमांडु के लिए निकला हूं। इस पर उन्होंने मुझे काठमांडु का सफर न करने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि सोनौली बॉर्डर पार करने के बाद काठमांडु पहुंचने के लिए कई घंटे का पर्वतीय सफर तय करना होगा। मुझे पहले से चक्कर आ रहे हैं और मैं अकेला भी हूं, ऐसे में परेशानी बढ़ सकती है। और फिर मैं दूसरे देश में भी जा रहा हूं, इसलिए मुझे यह जोखिम नहीं लेना चाहिए।
मैं सोच में पड़ गया कि अब आखिर मैं क्या करूं। लगभग आधा सफर मैं तय कर चुका था। यहां से वापस भी कैसे लौटूं। इसके बाद मन में अजीब-अजीब खयाल घर करने लगे।
ट्रेन का टिकट मैंने घर यानी कि हरदोई से ही कराया था। मुझे 150 से ज्यादा की वेटिंग मिली थी। इसके बावजूद मेरी टिकट कन्फर्म हो गई थी। इसे भी मैं पशुपतिनाथ बाबा की कृपा ही मान रहा था। अकेले इनते लंबे सफर पर निकलने का यह मेरा पहला अनुभव था और मैं अब मानो मझधार में फंस चुका था। अंत में मैंने फैसला किया कि गोरखपुर में उतरने के बाद आगे के बारे में सोचूंगा। वहीं, साथ में बैठे सज्जन मुझे सलाह दे रहे थे कि मैं अगली ट्रेन से वापस लौट जाऊं या डॉक्टर से परामर्श लेकर दवा लूं और गोरखपुर में ही होटल लेकर आराम करूं व अगले दिन ट्रेन से घर चला जाऊं।
इन सब उधेड़-बुनों के बीच ट्रेन गोरखपुर पहुंच गई। रेलवे स्टेशन से बाहर आते ही मैंने अपने एक डॉक्टर दोस्त को कॉल किया। उसे पूरी समस्या से अवगत कराया। उसने कमजोरी की वजह से ऐसा होने की आशंका व्यक्त की और ज्यूस पीने व कुछ हलका खा लेने की सलाह दी। मैंने स्टेशन परिसर से बाहर आकर एक बड़ा गिलास अनार का ज्यूस निकलवाया और पी गया। जैसे ही ज्यूस वाले को पैसे दिए, मुझे जोस से उल्टी आई। मैं वहीं बैठ गया। लगभग सारा ज्यूस बाहर आ चुका था। सिर सुन हो गया और मैं थोड़ा घबरा गया। एक उलटी से ही हालत ऐसी हो गई कि उठने की हिम्मत नहीं हो रही थी। आसपास से लोग गुजर रहे थे, लेकिन कोई पानी देने वाला तक नहीं था।
जैसे-तैसे उठा और फिर से अपने डॉक्टर दोस्त को फोन लगाया। उसने कहा कि बीपी का मामला लग रहा है। किसी डॉक्टर को दिखा लो या कहीं से बीपी चेक करवा लो। मैंने डॉक्टर की खोज शुरू की। कुछ समझ नहीं आया तो सीधे एक रिक्शा पकड़ा। रिक्श्ोवाले से कहा कि भाई किसी भी डॉक्टर के पास लेचलो। इसके बाद रिक्शा पहले सड़क और फिर गलियों में चल रहा था। गलियां ऐसी सुनसान थीं कि डर लगने लगा था कि यहां कहीं मेरा सामान ही न छिन जाए।
मुझे थोड़ा उदास देखकर पास में बैठे सज्जन ने पूछ लिया कि क्या हो गया परेशान दिख रहे हो। इससे पहले हुई वार्तालाप में मैंने उनसे यह साझा नहीं किया था कि मैं काठमांडु जा रहा हूं। लेकिन मैंने उन्हें दोबारा चक्कर आने की बात साझा करने के यह भी बता दिया कि मैं काठमांडु के लिए निकला हूं। इस पर उन्होंने मुझे काठमांडु का सफर न करने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि सोनौली बॉर्डर पार करने के बाद काठमांडु पहुंचने के लिए कई घंटे का पर्वतीय सफर तय करना होगा। मुझे पहले से चक्कर आ रहे हैं और मैं अकेला भी हूं, ऐसे में परेशानी बढ़ सकती है। और फिर मैं दूसरे देश में भी जा रहा हूं, इसलिए मुझे यह जोखिम नहीं लेना चाहिए।
मैं सोच में पड़ गया कि अब आखिर मैं क्या करूं। लगभग आधा सफर मैं तय कर चुका था। यहां से वापस भी कैसे लौटूं। इसके बाद मन में अजीब-अजीब खयाल घर करने लगे।
ट्रेन का टिकट मैंने घर यानी कि हरदोई से ही कराया था। मुझे 150 से ज्यादा की वेटिंग मिली थी। इसके बावजूद मेरी टिकट कन्फर्म हो गई थी। इसे भी मैं पशुपतिनाथ बाबा की कृपा ही मान रहा था। अकेले इनते लंबे सफर पर निकलने का यह मेरा पहला अनुभव था और मैं अब मानो मझधार में फंस चुका था। अंत में मैंने फैसला किया कि गोरखपुर में उतरने के बाद आगे के बारे में सोचूंगा। वहीं, साथ में बैठे सज्जन मुझे सलाह दे रहे थे कि मैं अगली ट्रेन से वापस लौट जाऊं या डॉक्टर से परामर्श लेकर दवा लूं और गोरखपुर में ही होटल लेकर आराम करूं व अगले दिन ट्रेन से घर चला जाऊं।
इन सब उधेड़-बुनों के बीच ट्रेन गोरखपुर पहुंच गई। रेलवे स्टेशन से बाहर आते ही मैंने अपने एक डॉक्टर दोस्त को कॉल किया। उसे पूरी समस्या से अवगत कराया। उसने कमजोरी की वजह से ऐसा होने की आशंका व्यक्त की और ज्यूस पीने व कुछ हलका खा लेने की सलाह दी। मैंने स्टेशन परिसर से बाहर आकर एक बड़ा गिलास अनार का ज्यूस निकलवाया और पी गया। जैसे ही ज्यूस वाले को पैसे दिए, मुझे जोस से उल्टी आई। मैं वहीं बैठ गया। लगभग सारा ज्यूस बाहर आ चुका था। सिर सुन हो गया और मैं थोड़ा घबरा गया। एक उलटी से ही हालत ऐसी हो गई कि उठने की हिम्मत नहीं हो रही थी। आसपास से लोग गुजर रहे थे, लेकिन कोई पानी देने वाला तक नहीं था।
जैसे-तैसे उठा और फिर से अपने डॉक्टर दोस्त को फोन लगाया। उसने कहा कि बीपी का मामला लग रहा है। किसी डॉक्टर को दिखा लो या कहीं से बीपी चेक करवा लो। मैंने डॉक्टर की खोज शुरू की। कुछ समझ नहीं आया तो सीधे एक रिक्शा पकड़ा। रिक्श्ोवाले से कहा कि भाई किसी भी डॉक्टर के पास लेचलो। इसके बाद रिक्शा पहले सड़क और फिर गलियों में चल रहा था। गलियां ऐसी सुनसान थीं कि डर लगने लगा था कि यहां कहीं मेरा सामान ही न छिन जाए।
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