सोमवार, 9 जुलाई 2018

2015 की एक यात्रा- पार्ट 1

(आंख खुली तो मैंने खुद को कोच की फर्श पर पड़ा पाया)
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सुबह के 9 बज रहे थे। मैं ट्रेन के स्‍लीपर कोच की अपनी अपर बर्थ पर सोया था। गर्मी बढ़ने के चलते मेरी नींद खुली। नीचे झांकर देखा तो मिडिल बर्थ खुल चुकी थी और रिजर्वेशनधारकों के साथ दैनिक यात्री बैठकर बाते कर रहे थे। देर तक लेट-लेटे शरीर में हलका दर्द होने लगा था। मैं नीचे उतरा और जगह बनाकर बैठ गया। कुछ देर हवा खाने के बाद मैं वाशरूम के लिए गया। अपने कम्‍पार्टमेंट से कुछ ही दूर पहुंचा था कि कदम ठिठक गए। पहले आंखों के सामने हलका अंधेरा आया और फिर ब्‍लैक आउट हो गया। आंख खुली तो मैं कोच की फर्श पर पड़ा था। वहीं बैठे लोगों ने मुझे उठने में मदद की और अपनी सीट पर बैठा लिया। कुछ समझ नहीं आ रहा था कि आखिर मेरा साथ हुआ क्‍या है।
कुछ देर बैठने के बाद मैं साधारण महसूस करने लगा। इसके बाद वाशरूम गया और फिर वापस आकर अपनी सीट पर बैठ गया। अपने साथ हुई घटना को मैंने सीट पर साथ में बैठे एक सज्‍ज्‍न से साझा किया। उन्‍होंने कहा कि तुम अभी खाली पेट हो, शायद इसी वजह से ऐसे हुआ हो। मुझे उनका लॉजिक समझ तो नहीं आया, लेकिन फिर भी मैं उनकी बात पर सहमत हो गया। ट्रेन जैसे ही बस्‍ती स्‍टेशन पर रुकी मैंने एक पानी की बोतल खरीद ली। बैग से बिस्‍किट निकाले और उन्‍हें खाकर पानी पी लिया। दिमाग में अभी भी यही चल रहा था कि आखिर मुझे चक्‍कर कैसे आ गया। इससे पहले मैंने कभी भी (गस) चक्‍कर का अनुभव नहीं किया था। वहीं मन को यह भी समझा रहा था कि अब कुछ खा लिया है, इसलिए सब ठीक हो जाएगा। ट्रेन वहां से चल चुकी थी। मुझे गोरखपुर में उतरना था। वहां से मुझे काठमांडु पहुंचने का इंतजाम करना था। दरअसल, कुछ दिनों पूर्व अचानक ही पशुपतिनाथ बाबा के दर्शन करने की इच्‍छा जागी थी। इसके बाद मैंने कुछ मित्रों से जाने को लेकर बात की, लेकिन कोई भी चलने को राजी नहीं हुआ। इस पर मैं अकेला ही सफर पर निकल आया था।
ट्रेन अच्‍छी गति से चल रही थी, इसी बीच मुझे फिर वाशरूम जाने के लिए उठना हुआ। वाशरूम गया और फिर ट्रेन के गेट पर खड़े होकर हवा खाने को मन हुआ। लेकिन मन में खयाल आया कि कहीं चक्‍कर न आ जाए। डर के चलते पीछे हटकर पार्टीशन से पीठ लगाकर खड़ा हो गया। वहां खड़े हुए कुछ ही देर हुई थी कि जिसका डर था वही हुआ। मैं फिर अचानक गस खाकर गिर पड़ा। आंख खुली तो लोग मुझे उठाने की कोशिश कर रहे थे।
मेरी समझ नहीं आ रहा था कि आखिर मेरे साथ क्‍या और क्‍यों हो रहा है?
क्रमश:

(*Parts of artwork have been borrowed from the internet, with due thanks to the owner of the photograph/art)

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