जिंदगी में हर घटना के पीछे कोई न कोई कारण होता है... इस घटना के पीछे का कारण जब जाना तो आंखों से आंसू बहने लगे
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कुछ ही देर बाद रिक्शा वाले ने तीन चार अस्पतालों वाले इलाके में पहुंचा दिया। मैं हैरान परेशान पहले एक अस्पताल में घुसा। डॉक्टर का पता किया तो उपलब्ध नहीं थे। तीनों अस्पतालों की यही स्थिति थी। सभी अस्पतलों में ओपीडी शुरू होने वाली थीं। मरीजों की लंबी कतार थीं। अंत में एक अस्पताल में गया तो डॉक्टर के रूम के बाहर ही उसका असिस्टेंट बीपी नापने वाली मशीन लिए बैठे दिखा। उससे बीपी नापने का अग्रह किया तो उसने साफ मना कर दिया। बोला कि पहले फीस भरकर पर्चा बनावकर आओ। मैंने पूछा कि डॉक्टर कितनी देर में बैंठेंगे तो उसने बताया कि एक घंटे बाद। भीड़ की तरफ देखा तो हिम्मत जवाब दे गई। मैंने उससे फिर आग्रह किया कि भाई मैं डॉक्टर को नहीं दिखाना चाहता, मुझे तो बस बीपी चेक कराना है। उसने फिर मना कर दिया। मैंने भोली और उदास सी सूरत लिए फिर अनुरोध किया तो वो मान गया। बीपी चेक किया, नॉर्मल निकला। मैं फिर हैरान था। अब तो बीपी भी नॉर्मल है तो फिर चक्कर क्यों आए। अस्पतालों के चक्कर लगाने के दौरान ये भी ध्यान में नहीं आया कि वहां कि इमरजेंसी सेवा लेकर ही बीपी चेक करवा लूं।
खैर, डॉक्टर दोस्त को बीपी के बारे में बताया और उसके द्वारा बताई गईं दवाएं ले लीं। अब यहां से चलने की बारी थी। रास्ता पता किया और पैदल ही चल दिया। कुछ ही देर में उस मुख्य सड़क पर आ गया, जहां से अस्पताल ले जाने में रिक्शे वाले ने न जाने कितना घुमाया था। मतलब जेब पर डाका डालने के लिए रिक्शे वाले भाई ने यूंही न जाने गोरखपुर की कौन-कौन सी कुंज गलियों का भ्रमण करा दिया था।
अब इरादा साफ हो चुका था कि रास्ता काठमांडु का नहीं, हरदोई का पकड़ना था। लौटने का रिजर्वेशन काम नहीं आना था, क्योंकि वह दो दिन बाद का था। तो अब बारी धक्का खाते हुए घर लौटने की थी। इन धक्कों की कोई चिंता नहीं थी, मन व्यथित था तो पहली बार अकेले निकलने वाली यात्रा के असफल होने से। डूबे मन और डबडबाई आंखों से रेलवे स्टेशन पहुंचा। ट्रेन का पता किया तो जानकारी मिली कि आज गोरखपुर से मुंबई के लिए नई ट्रेन शुरू हो रही है। गया तो प्लेटफॉर्म पर सजी-धजी ट्रेन खड़ी मिली। आसानी से सीट मिल गई। करीब एक घंटे बाद ट्रेन चल दी। दवा का असर हुआ और गहरी नींद आ गई। सफर का पता ही नहीं चला। लखनऊ पहुंचने से पहले ही घर फोन करके मां से कह दिया कि मेरे लिए भी खाना बना लेना। उन्होंने जल्दी लौटने का कारण पूछा तो मैंने कह दिया कि लौट कर बताऊंगा। मुझे डर था कि अगर उन्हें तबीयत खराब की बात बताई तो वे घबरा जाएंगी। रात तक घर पहुंच भी गया। तमाम नशीहतें मिलीं। हालांकि, मैं हमेशा की तरह जीवन की इस घटना के कारणों को जानने की कोशिश कर रहा था। मैं जानना चाहता कि इस घटना के जरिये आखिर ईश्वर क्या कहने की कोशिश कर रहा है। उस दिन इसका कोई जवाब नहीं मिला।
मेरे लौटने केे दो दिन बाद यानी 25 अप्रैल 2015 को नेपाल में 7.9 की तीव्रता वाला भयानक भूकंप आया। इसमें 8000 से अधिक लोग मारे गए। दूरसंचार समेत सभी सेवाएं लगभग ठप हो गईं। इस समाचार को देखते हुए मैं पहले स्तब्ध हुआ और फिर मेरी आंखों से आंसू बहने लगे। मुझे मेरी असफल यात्रा के पीछे का जवाब मिल गया था। मुझे रास्ते में ही रोके जाने का जवाब मिल गया था। मैं आंखें बंद कर काफी देर तक लेटा रहा। गालों पर बहकर आए आसुंओं के सूखने के संग मैं अपने सिर पर उसके हाथ के स्पर्श को महसूस कर रहा था।
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आज यह लिखते हुए उस दिन के बारे में सोचकर रोंगटे खड़े हो रहे हैं। उठाने वाले ईश्वर के अस्तित्व पर तक सवाल उठा रहे हैं, उन्हें उठाना भी चाहिए। मैं कैसे उठाऊं मैंने तो उसकी गंध को, उसके स्पर्श को कई दफा महसूस किया है।
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कुछ ही देर बाद रिक्शा वाले ने तीन चार अस्पतालों वाले इलाके में पहुंचा दिया। मैं हैरान परेशान पहले एक अस्पताल में घुसा। डॉक्टर का पता किया तो उपलब्ध नहीं थे। तीनों अस्पतालों की यही स्थिति थी। सभी अस्पतलों में ओपीडी शुरू होने वाली थीं। मरीजों की लंबी कतार थीं। अंत में एक अस्पताल में गया तो डॉक्टर के रूम के बाहर ही उसका असिस्टेंट बीपी नापने वाली मशीन लिए बैठे दिखा। उससे बीपी नापने का अग्रह किया तो उसने साफ मना कर दिया। बोला कि पहले फीस भरकर पर्चा बनावकर आओ। मैंने पूछा कि डॉक्टर कितनी देर में बैंठेंगे तो उसने बताया कि एक घंटे बाद। भीड़ की तरफ देखा तो हिम्मत जवाब दे गई। मैंने उससे फिर आग्रह किया कि भाई मैं डॉक्टर को नहीं दिखाना चाहता, मुझे तो बस बीपी चेक कराना है। उसने फिर मना कर दिया। मैंने भोली और उदास सी सूरत लिए फिर अनुरोध किया तो वो मान गया। बीपी चेक किया, नॉर्मल निकला। मैं फिर हैरान था। अब तो बीपी भी नॉर्मल है तो फिर चक्कर क्यों आए। अस्पतालों के चक्कर लगाने के दौरान ये भी ध्यान में नहीं आया कि वहां कि इमरजेंसी सेवा लेकर ही बीपी चेक करवा लूं।
खैर, डॉक्टर दोस्त को बीपी के बारे में बताया और उसके द्वारा बताई गईं दवाएं ले लीं। अब यहां से चलने की बारी थी। रास्ता पता किया और पैदल ही चल दिया। कुछ ही देर में उस मुख्य सड़क पर आ गया, जहां से अस्पताल ले जाने में रिक्शे वाले ने न जाने कितना घुमाया था। मतलब जेब पर डाका डालने के लिए रिक्शे वाले भाई ने यूंही न जाने गोरखपुर की कौन-कौन सी कुंज गलियों का भ्रमण करा दिया था।
अब इरादा साफ हो चुका था कि रास्ता काठमांडु का नहीं, हरदोई का पकड़ना था। लौटने का रिजर्वेशन काम नहीं आना था, क्योंकि वह दो दिन बाद का था। तो अब बारी धक्का खाते हुए घर लौटने की थी। इन धक्कों की कोई चिंता नहीं थी, मन व्यथित था तो पहली बार अकेले निकलने वाली यात्रा के असफल होने से। डूबे मन और डबडबाई आंखों से रेलवे स्टेशन पहुंचा। ट्रेन का पता किया तो जानकारी मिली कि आज गोरखपुर से मुंबई के लिए नई ट्रेन शुरू हो रही है। गया तो प्लेटफॉर्म पर सजी-धजी ट्रेन खड़ी मिली। आसानी से सीट मिल गई। करीब एक घंटे बाद ट्रेन चल दी। दवा का असर हुआ और गहरी नींद आ गई। सफर का पता ही नहीं चला। लखनऊ पहुंचने से पहले ही घर फोन करके मां से कह दिया कि मेरे लिए भी खाना बना लेना। उन्होंने जल्दी लौटने का कारण पूछा तो मैंने कह दिया कि लौट कर बताऊंगा। मुझे डर था कि अगर उन्हें तबीयत खराब की बात बताई तो वे घबरा जाएंगी। रात तक घर पहुंच भी गया। तमाम नशीहतें मिलीं। हालांकि, मैं हमेशा की तरह जीवन की इस घटना के कारणों को जानने की कोशिश कर रहा था। मैं जानना चाहता कि इस घटना के जरिये आखिर ईश्वर क्या कहने की कोशिश कर रहा है। उस दिन इसका कोई जवाब नहीं मिला।
मेरे लौटने केे दो दिन बाद यानी 25 अप्रैल 2015 को नेपाल में 7.9 की तीव्रता वाला भयानक भूकंप आया। इसमें 8000 से अधिक लोग मारे गए। दूरसंचार समेत सभी सेवाएं लगभग ठप हो गईं। इस समाचार को देखते हुए मैं पहले स्तब्ध हुआ और फिर मेरी आंखों से आंसू बहने लगे। मुझे मेरी असफल यात्रा के पीछे का जवाब मिल गया था। मुझे रास्ते में ही रोके जाने का जवाब मिल गया था। मैं आंखें बंद कर काफी देर तक लेटा रहा। गालों पर बहकर आए आसुंओं के सूखने के संग मैं अपने सिर पर उसके हाथ के स्पर्श को महसूस कर रहा था।
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आज यह लिखते हुए उस दिन के बारे में सोचकर रोंगटे खड़े हो रहे हैं। उठाने वाले ईश्वर के अस्तित्व पर तक सवाल उठा रहे हैं, उन्हें उठाना भी चाहिए। मैं कैसे उठाऊं मैंने तो उसकी गंध को, उसके स्पर्श को कई दफा महसूस किया है।
(*Parts of artwork have been borrowed from the internet, with due thanks to the owner of the photograph/art)
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