सोमवार, 9 जुलाई 2018

वो मिट्टी में सने हैं तो आपके लिए

वृक्ष की जड़ जिंदगी भर मिट्टी से सनी और उसमें दबी रहती है। तब जाकर कहीं वह साखों के लिए पानी और पोषक तत्‍व जुटाती रहती है। इन्‍हीं साखों पर जब फूल और फल आते हैं तो साखों और तने संग जड़ भी अह्लादित हो स्थिर रहकर भी झूम उठती है। पुष्‍प व फल की खूबसूरती, सुगंध व स्वाद देख वह अपने बलिदान को सार्थक मानती है और उसे निरंतर जारी रखती है। लेकिन अक्‍सर फल और फूल इस बलिदान को भूल जाते हैं।
मुनव्‍वर राना कहते हैं न कि पत्‍ते देहाती रहते हैं और फल शहरी हो जाते हैं। ये खुद को शहरी समझने वाले कुछ फल पत्‍तों और जड़ों को निम्‍न समझने लगते हैं। लेकिन वो नहीं समझ पाते कि जब जड़ को उपेक्षा की दीमक लगती है तो पत्‍ते और फल सब सूखकर झड़ ही जाते हैं।
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आप समझ रहे होंगे कि क्‍या कहने की कोशिश है। जिन देहाती जड़ों को चूंसकर आप शहरी इंजीनियर, डॉक्‍टर, पायलट से लेकर एस्‍ट्रोनॉट तक बने और मुंबई, दिल्‍ली से लेकर न्‍यूयॉर्क तक में जाकर बस गए हो, उन्‍हें भूलो नहीं। आप भले चटख चमकीले रंग के हैं और वो मिट्टी से सने धूल धूसरित हैं, लेकिन उनके बारे में किसी को बताने में शर्म न करो। वक्‍त-वक्‍त पर आकर उन्‍हें स्‍नेह की खाद और विश्‍वास का पानी देते रहो। अगर आपकी उपेक्षा की दीमक उन्‍हें लगी तो आज आप भले शिखर की ओर हों लेकिन आपका पतन तय है। भले देर से हो, मगर होगा जरूर। क्‍योंकि, यही प्रकृति का नियम है।

(*Parts of artwork have been borrowed from the internet, with due thanks to the owner of the photograph/art)

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